Best Motivational Poems In Hindi - मोटिवेशनल कविता हिंदी में

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Motivational Poem 1 - चलना हमारा काम है

गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर-दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना बड़ा
जब तक न मंजिल पा सकूं
तब तक न मुझे विराम है
चलना हमारा काम है

चलना हमारा काम है
कुछ कह लिया कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बट गया
अच्छा हुआ तुम मिल गई
कुछ रास्ता भी कट गया
क्या राह में परिचय कहूं
राही हमारा नाम है
चलना हमारा काम है

चलना हमारा काम है
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा
हंसता कभी रोता कभी
गति मति न हो अवरुद्ध
इसका ध्यान आठो याम है
चलना हमारा काम है

चलना हमारा काम है
इस विशद विश्व प्रवाह में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ में क्यों कहता फिरू
मुझ पर विधाता वाम है
चलना हमारा काम है

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चलना हमारा काम है
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ ना कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
हो निराशा क्यों मुझे
जीवन इसी का नाम है
चलना हमारा काम है

चलना हमारा काम है
साथ में चलते रहे
कुछ बीच में से ही फिर गए
गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए सो गिर गए
जो चलते रहे हरदम
उसी की सफलता अभिराम है
चलना हमारा काम है

चलना हमारा काम है
फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलके सहज
दो घूंट हंसकर पी गया
सुधा मिश्रित गरल
वही साकिया का जाम है
चलना हमारा काम है
चलना हमारा काम है

पद्मभूषण शिवमंगल सिंह 'सुमन' (Shivmangal Singh 'Suman)

Best Motivational Poem 2 - मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एहसान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

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शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गति की मशाल आंधी में ही हंसती है..
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गति आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..

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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
गोपालदास नीरज

Top Motivational Poem 3 - सफर में धूप तो होगी


सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
इधर उधर कई मंजिल है जो चल सको तो चलो
बने बनाए हैं सांचे जो ढल सको तो चलो
सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहे कहां बदलती हैं
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो
यहां कोई किसी को रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो
यही है जिंदगी कुछ ख्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी अगर बहल सको तो चलो
सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो


कहीं नहीं सूरज धुआं धुआं है फिजा
खुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
हर एक सफर को है महफूज रास्तों की तलाश
हिफाजतो के रिवायते बदल सको तो चलो
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
निदा फाजली (Nida Fazli)

Motivational Poem 4 - दुनिया में यूँही होता है


जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लहराया
जब आंसू पलकों तक आया
जब ये तनहा दिल घबराया

हमने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया में यूँही होता है
ये जो गहरे सन्नाटे हैं

वक़्त ने सबको ही बांटे हैं
थोड़ी धुप है सबका हिस्सा
थोड़ा गम है सबका क़िस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम्म है

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हर पल एक नया मौसम है
क्यों तू ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया में यूँही होता है
जावेद अख्तर (Javed Akhtar)

Self Motivational Poem 5 -  तू ख़ुद की खोज में निकल


 तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

जो तुझसे लिपटी बेड़ियाँ

समझ न इनको वस्त्र तू

ये बेड़ियाँ पिघाल के

बना ले इनको शस्त्र तू

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

चरित्र जन पवित्र है

तोह क्यों है ये दशा तेरी

ये पापियों को हक़ नहीं

की लें परीक्षा तेरी

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

जला के भस्म कर उसे

जो क्रूरता का जाल है

तू आरती की लौ नहीं

तू क्रोध की मशाल है

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

चूनर उड़ा के ध्वज बना

गगन भी कपकपाएगा

अगर तेरी चूनर गिरी

तोह एक भूकंप आएगा

तू ख़ुद की खोज में निकल

तू किसलिए हताश है

तू चल तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

तनवीर गाज़ी

Motivational Kavita in Hindi 6 - कांटों में राह बनाते हैं


सच है, विपत्ति जब आती है

कायर को ही दहलाती है

सूरमा नहीं विचलित होते

क्षण एक नहीं धीरज खोते

विघ्नों को गले लगाते हैं

कांटों में राह बनाते हैं

मुँह से कभी उफ़ न कहते हैं

संकट का चरण न गहते हैं

जो आ पड़ता सब सहते हैं

उद्योग-निरत नित रहते हैं

शूलों का मूल नसाते हैं

बढ़ ख़ुद विपत्ति पर छाते हैं

है कौन विघ्न ऐसा जग में

टिक सके आदमी के मग में?

ख़म ठोक ठेलता है जब नर

पर्वत के जाते पाँव उखड़

मानव जब ज़ोर लगाता है

पत्थर पानी बन जाता है

गुण बड़े एक से एक प्रखर

है छिपे मानवों के भीतर

मेहंदी में जैसे लाली हो

वर्तिका बीच उजियाली हो

बत्ती जो नहीं जलाता है

रोशनी नहीं वह पाता है

स्व. रामधारी सिंह ‘दिनकर’

Motivated Poem in Hindi 7 - तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है?


तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है?

कहते हैं ये शूल चरण में बिंधकर हम आए

किंतु चुभे अब कैसे जब सब दंशन टूट गए

कहते हैं पाषाण रक्त के धब्बे हैं हम पर

छाले पर धोएं कैसे जब पीछे छूट गए

यात्री का अनुसरण करें

इसका न सहारा है!

तुम्हारा मन क्यों हारा है?

इसने पहिन वसंती चोला कब मधुबन देखा?

लिपटा पग से मेघ न बिजली बन पाई पायल

इसने नहीं निदाघ चाँदनी का जाना अंतर

ठहरी चितवन लक्ष्यबद्ध, गति थी केवल चंचल!

पहुँच गए हो जहाँ विजय ने

तुम्हें पुकारा है!

तुम्हारा मन क्यों हारा है?

स्व. महादेवी वर्मा

Motivational Hindi Poem 8 - बाधाएं आती हैं आएं

बाधाएं आती हैं आएं
घिरे प्रलय की घोर घटाएं

पावों के नीचे अंगारे

सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं

निज हाथों से हंसते-हंसते

आग लगाकर जलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

हास्य-रूदन में, तूफानों में

अगर असंख्य बलिदानों में

उद्यानों में, वीरानों में

अपमानों में, सम्मानों में

उन्नत मस्तक, उभरा सीना

पीड़ाओं में पलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

उजियारे में, अंधकार में

कल कछार में, बीच धार में

घोर घृणा में, पूत प्यार में

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में

जीवन के शत-शत आकर्षक

अरमानों को दलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

सम्मुख फैला अमर ध्येय पथ

प्रगति चिरंतन कैसा इति अथ

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ

असफ़ल, सफ़ल समान मनोरथ

सब कुछ देकर कुछ न मांगते

पावस बनकर ढलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

कुछ कांटों से सज्जित जीवन

प्रखर प्यार से वंचित यौवन

नीरवता से मुखरित मधुबन

पर-हित अर्पित अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आहुति में

जलना होगा, गलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

अटल बिहारी वाजपेयी

Motivational Kavita 9 - संभलो कि सुयोग न जाय चला

संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला

समझो जग को न गिरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना

अखिलेश्वर है अवलंबन को

नर हो, न निराश करो मन को.

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ

तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो

दवरूप रहो भव कानन को

नर हो, न निराश करो मन को.

निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे

मरणोत्तर गुंजित गान रहे

सब जाय अभी पर मान रहे

कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो, न निराश करो मन को.

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प्रभु ने तुमको कर दान किए

सब वांछित वस्तु विधान किए

तुम प्राप्त करो उनको न अहो

फिर है यह किसका दोष कहो

समझो न अलभ्य किसी धन को

नर हो, न निराश करो मन को.

किस गौरव के तुम योग्य नहीं

कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं

जान हो तुम भी जगदीश्वर के

सब है जिसके अपने घर के

फिर दुर्लभ क्या उसके जन को

नर हो, न निराश करो मन को

करके विधि वाद न खेद करो

निज लक्ष्य निरंतर भेद करो

बनता बस उद्यम ही विधि है

मिलती जिससे सुख की निधि है

समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो.

स्व. मैथलीशरण गुप्ता 

Motivational Poem in Hindi 10 – कोने में बैठ कर क्यों रोता है

कोने में बैठ कर क्यों रोता है,
यू चुप चुप सा क्यों रहता है।

आगे बढ़ने से क्यों डरता है,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है।

तकदीर को क्यों रोता है,
मेहनत से क्यों डरता है।

झूठे लोगो से क्यों डरता है,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है।

हाथ नहीं होते नसीब होते है उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।

भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
सांज होने के भय से नहीं डरता है।

मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।

किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।

भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।

नरेंद्र वर्मा